रेखाएं
सीमान्त की धुरी पर
सीधी समझ से परे झुककर
उलझ कर बन जायें
वक्र
कैद
मन के रूपक
में व्यक्त होती विषयी
सूक्ष्म लौ में जलती
उन्मुक्त
एकतरफा
ओस से भीगा
नैसर्गिक उन्माद के आवेश में
पेड़ पर आये पत्तों सा
स्वाभाविक
विश्वास
संवेदना के अक्ष पर
झूलता डगमगाता विधि के
दोराहों पर चुनता
आघात
सीमान्त की धुरी पर
सीधी समझ से परे झुककर
उलझ कर बन जायें
वक्र
कैद
मन के रूपक
में व्यक्त होती विषयी
सूक्ष्म लौ में जलती
उन्मुक्त
एकतरफा
ओस से भीगा
नैसर्गिक उन्माद के आवेश में
पेड़ पर आये पत्तों सा
स्वाभाविक
विश्वास
संवेदना के अक्ष पर
झूलता डगमगाता विधि के
दोराहों पर चुनता
आघात
सुंदर!!!
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